हम आज आप लोगों को NCERT Hindi Class 9 से Raskhan Ke Savaiye के बारे मे बताने जा रहे है जो की NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 11 – सवैये है
आज अभी हम लोग Raskhan ke Savaiye के भावार्थ के बारे में बताने वाले है और Raskhan ke Savaiye Class 9 मे जो बृज भाषा का उपयोग किया गया है जिसको समझने मे सायद आप सभी को परेशानी हो रही होगी।
इसलिए मै आपको NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 11 – सवैये के भावार्थ के साथ-साथ Raskhan के शब्दार्थ भी बताने वाला हूँ जिससे आप सभी को Raskhan ke Savaiye हिन्दी मे समझ आ सके लेकिन उससे पहले हम एकबार यह जान लेते है की रसखान कौन थे ?
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रसखान कौन थे ?
रसखान सगुण काव्यधारा के एक कृष्ण -भक्ति शाखा के मुस्लिम कवि थे । उनका नाम सैयद इब्राहीम था । रसखान का जन्म दिल्ली के आसपास सन् 1548 मे हुआ था ।
और उनकी मृत्यु लगभग सन् 1628 है । कवि रसखान भक्तिकाल के प्रमुख कवि मे एक हैं । रसखान को इतिहास मे ‘रस की खान कहा गया है । रसखान रीतिकालीन है परन्तु उनकी रचना कृष्ण -भक्ति काव्यधारा की परम्परा से है रसखान आरंभ से ही प्रेमी व्यक्ति थे।

रसखान के काव्य मे भक्ति व श्रृंगार रस ,दोनों मिलते हैं । रसखान के काव्य मे श्री कृष्ण के प्रति जो भक्ति -भावना और प्रेम है वह बहुत दुर्लभ है ।
रसखान अपनी रचनाओ मे श्री कृष्ण को प्रेम करते और निरंतर रूप सौन्दर्य ,एवं नेत्रों का वर्णन करते रहते हैं रसखान ने ब्रजभाषा मे काव्यरचना की । उनकी भाषा मधुर एवं सरस है । इसी कारण रसखान की रचनाएं ह्रदय पर मार्मिक प्रभाव डालती है ।
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NCERT Hindi Class 9 Chapter 11 Raskhan Ke Savaiye
रसखान के सवैये -रसखान एक मुस्लिम कवि थे । लेकिन वह एक सच्चे कृष्णभक्त थे । रसखान द्वारा रचित सवैये कृष्ण और उनकी लीला वरन्दावन भूमि पर प्रत्येक वस्तु के प्रति लगाव प्रकट किया है ।
पहले सवैये मे रसखान ने कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति एवं प्रेम को दर्शाया है । रसखान कहते हैं कि भगवान हमें चाहें जो बनाये मनुष्य बनाये या पशु -पक्षी और चाहे बनाये पत्थर कवि को इससे फर्क तनिक भी नहीं पड़ता। कवि तो सिर्फ और सिर्फ कृष्ण का साथ ही चाहते है
और इसी तरह हम पहले सवैये में यह जान सकते हैं और देख सकते हैं कि कवि कृष्ण के प्रति अपने भक्ति भाव को प्रेम को कैसे निछावर कर रहा है
और इतना ही नहीं अपने दूसरे सवैया में रसखान ने ब्रज प्रेम का वर्णन भी दिया है और वह ब्रिज के खातिर संसार के सभी सुखों का त्याग भी कर देना चाहता है और इस तरह वह दूसरे सवैया में भी कृष्ण के प्रति अपना प्रेम ही दिखा रहा है
और इसी तरह से तीसरे सवैया में भी रसखान ने गोपियों का प्रेम कितना है कुछ उनके प्रति वह दर्शाया है और उन्हें कृष्ण के हर एक वस्तु से कितना लगा हुआ प्रेम है यह दर्शाने की कोशिश की है और गोपियां स्वयं कृष्ण का रूप कैसे धारण कर लेना चाहती हैं ताकि गोपियां कभी उनसे जुदा ना हो सके
और उसके बाद में अंतिम सवैया की बारी आती है तो उसमें भी कवि ने कृष्ण की मुरली की मधुर ध्वनि और गोपियों की विशेषता का वर्णन करते हुए बताया है कि किस प्रकार गोपियां चाह कर भी कृष्ण से जुदा होकर नहीं रह सकती हैं और सारी ब्रज धाम की गोपियां अपना प्रेम कृष्ण पर निछावर कर देना चाहती हैं
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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Chapter 11 – सवैये Video
Raskhan ke Savaiye Bhavarth Sahit (रसखान के सवैये भावार्थ सहित)
अभी मै आपको Raskhan ke Savaiye Bhavarth Sahit बताने वाला हूँ जिनमे हम Savaiye के प्रसंग और उनके शब्दार्थ के साथ-साथ Raskhan ke Savaiye की विशेषता के बारे में भी जानेंगे और समझेंगे की Raskhan ke Savaiye मे किस भाषा का प्रयोग किया गया है।
Raskhan ke Savaiye 1
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।।
Raskhan ke Savaiye शब्दार्थ 1
शब्द | अर्थ |
---|---|
मानुष | मनुष्य |
बसौं | बसना, रहना |
ग्वारन | ग्वालों के मध्य |
कहा बस | वश में रहना |
चरौं | चरता रहूँ |
नित | हमेशा |
धेनु | गाय |
मँझारन | बीच में |
पाहन | पत्थर |
गिरि | पर्वत |
छत्र | छाया या छाता |
पुरंदर | इंद्र |
धारन | धारण करना |
खग | पक्षी |
बसेरो | निवास करना |
कालिंदी | यमुना |
कूल | किनारा |
कदंब | एक वृक्ष |
डारन | शाखाएँ, डालें |
Raskhan ke Savaiye प्रसंग 1
यह सवैया हमारे हिंदी की पाठ्यपुस्तक Kshitij Class 9 Hindi Chapter 11 Raskhan Ke Savaiye से लिया गया है और इस सवैया के रचयिता रसखान है और कवि ने यह सब प्रथम सवैया में श्री कृष्ण के अपनी भक्ति और प्रेम तथा गांव गोकुल का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है
Raskhan ke Savaiye भावार्थ 1
प्रथम सवैया में कवि रसखान श्री कृष्ण और उनके गांव गोकुल ब्रज धाम के प्रति अपना लगाव का वर्णन करते हुए कहता है कि ब्रज के कण-कण में श्री कृष्ण का वास होता है और इसी वजह से कवि अपने प्रत्येक जन्म में ब्रज की धरती पर ही वास करना चाहते हैं।


और कभी कहता है कि चाहे उनका जन्म मनुष्य के रूप में हो तब भी वह गोकुल के गानों के बीच में ही रहना घूमना टहलना पसंद करेंगे और अगर उनका जन्म पशु के रूप में होता है तब भी वह गोकुल की गायों के साथ घूमना फिरना ही चाहते हैं।
और वह यह भी कहते हैं कि वह पत्थर भी बने तो उसी गोवर्धन पर्वत पर रहना चाहते हैं जिस गोवर्धन पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी उंगली पर धारण किया था और कभी यह भी कहते हैं कि अगर उनका जन्म पक्षी जाति में होता है तो भी वह यमुना के तट पर कदम के पेड़ों पर रहने वाले पक्षियों के साथ में ही घूमना फिरना वा रहना पसंद करेंगे।
और इस प्रकार कभी अपने पहले सवैया में जन्म के बारे में और वह अपने कृष्ण के प्रति प्रेम को दर्शाता है
Raskhan ke Savaiye विशेषता 1
- प्रस्तुत सवैया में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है
- प्रथम सवैया के बसौं ब्रज, गोकुल गांव, कालिंदी कूल कदंब अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है
Raskhan ke Savaiye 2
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं ।।
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।।
Raskhan ke Savaiye शब्दार्थ 2
शब्द | अर्थ |
---|---|
या | इस |
लकुटी | लाठी |
कामरिया | छोटा कंबल |
तिहूँ | तीनों |
पुर | नगर, लोक |
तजि डारौं | छोड़ दूँ |
नवौ निधि | नौ निधियाँ |
बिसारौं | भूलूँ |
कबौं | जब से |
सौं | से |
तड़ाग | तालाब |
निहारौं | देखता हूँ |
कोटिक | करोड़ों |
कलधौत | सोना |
धाम | भवन |
करील | एक प्रकार का वृक्ष |
कुंजन | लताओं का घर |
वारौं | न्योछावर करना |
Raskhan ke Savaiye प्रसंग 2
दूसरे सवैया को हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज के पाठ 11 रसखान के सवैया से लिया गया है और इस समय या के रचयिता रसखान है और इस समय में कभी को श्रीकृष्ण की वस्तुओं से कितना लगाव है वह उन वस्तुओं के मुंह में सब कुछ त्यागने के लिए कैसे तैयार है उसके बारे में वर्णन करता है
Raskhan ke Savaiye भावार्थ 2
दूसरे सवैया में कवि रसखान भगवान श्री कृष्ण की हर एक जुड़ी हुई वस्तुओं के बारे में गहरा लगाव दिखाता है और कभी कृष्ण की लाठी और कंबल के लिए तीनों लोगों का राज पार्ट छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है।


और अगर कवि को नंद की गायों को चराने का मौका मिले तो वह अपनी आठों सिद्धियां और नौ निधियों का भी सुख त्यागने को तैयार है और वह कभी ने ब्रज के बनो बगीचों तालाबों के बारे में कहा और उन्हें देखा वह इनसे दूर नहीं रह पा रहे हैं।
जबसे कवि ने करील की झाड़ियां और वन को देखा है तब से वह ऊपर करोड़ों सोने के महल भी निछावर करने के लिए इतना आसानी से तैयार हो जाते हैं
और इस तरह से रसखान कवि श्री कृष्ण की हर एक प्रिय वस्तुओं के प्रति अपना असीम भक्ति और प्रेम दर्शाता है
Raskhan ke Savaiye विशेषता 2
- प्रस्तुत दूसरे समय में ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया गया है
- इस बन बाग, नवौ निधि में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है
Raskhan ke Savaiye 3
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।
Raskhan ke Savaiye शब्दार्थ 3
शब्द | अर्थ |
---|---|
मोरपखा | मोर के पंखों से बना मुकुट |
राखिहौं | रचूँगी |
गुंज | एक जंगली पौधे का छोटा-सा फल |
गरें | गले में |
पहिरौंगी | पहनूँगी |
पितंबर | पीलावस्त्र |
गोधन | गाय रूपी धन |
ग्वारिन | ग्वालिन |
फिरौंगी | फिरूँगी |
भावतो | अच्छा लगना |
वोहि | जो कुछ |
स्वाँग | रूप धारण करना |
मुरलीधर | कृष्ण |
अधरा | होंठों पर |
धरौंगी | रखूँगी |
Raskhan ke Savaiye प्रसंग 3
प्रस्तुत तीसरा सवैया के हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज के पाठ 11 से लिया गया है और इस काव्य के रचयिता रसखान है इस समय में रसखान कवि गोपियों का श्री कृष्ण के प्रति और उनकी हर एक वस्तु के प्रति प्रेम व स्नेह प्रकट करता है
Raskhan ke Savaiye भावार्थ 3
तीसरे सवैया में प्रस्तुत पंक्तियों में कभी कृष्ण से अपार प्रेम करने वाली ब्रज की गोपियों के बारे में बताता है और एक दूसरे से बात करते हुए गोपियां क्या कह रही हैं उसके बारे में बताता है और कान्हा द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं की मदद से कृष्ण का रूप धारण कर सकती है।


इस तरह से कृष्ण की प्रिय वस्तुओं से खुद को सजाना चाहती हैं और वह कृष्ण की मुरली को धारण नहीं करेगी और गोपिया का कहना है कि श्री कृष्ण जिस तरह मोर पंख वाला मुकुट धारण करते हैं वह भी उसी तरह मुकुट धारण करना चाहती हैं और गले में कुंज की माला भी पहनना चाहती हैं।
और साथ ही कृष्ण के समान पीले वस्त्र पहन कर अपने हाथों में लाठी लेकर वन के ग्वालो के संग गाय चराना चाहती हैं और गोपियां यह भी कहती हैं कि कृष्ण हमारे मन को बहुत आते हैं इसलिए हम सब आप के कहने पर यह कर लेंगे परंतु आप हमसे इस मुरली को अपने होठों पर धारण करने के लिए कभी ना कहें।
क्योंकि इसी मुरली की वजह से कृष्ण हमसे जुदा होते हैं और गोपियों को लगता है कि श्री कृष्ण मुरली से बहुत अधिक प्रेम व लगाओ रखते हैं और उसे हमेशा अपने होठों से लगाकर रखते हैं इसीलिए मुरली को अपनी सौतन या शार्ट की तरह सारी गोपियां देखती हैं
Raskhan ke Savaiye विशेषता 3
- प्रस्तुत सवैया में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है
- इसमें मुरली मुरलीधर में अनुप्रास अलंकार है
Raskhan ke Savaiye 4
काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै।।
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।।
Raskhan ke Savaiye शब्दार्थ 4
शब्द | अर्थ |
---|---|
काननि | कानों में |
दै | देकर |
अँगुरी | उँगली |
रहिबो | रहूँगी |
धुनि | धुन |
मंद | मधुर स्वर में |
बजैहै | बजाएँगे |
मोहनी | मोहनेवाली |
तानन | तानों, धुनों से |
अटा | अटारी, अट्टालिका |
गोधन | व्रजक्षेत्र में गाया जाने वाला लोकगीत |
गैहै | गाएँगे |
टेरि | पुकारकर बुलाना |
सिगरे | सारे |
ब्रजलोगनि | बृज के लोग |
काल्हि | कल |
समुझैहै | समझाएँगे |
माइ री | हे माँ! |
वा | वह, उसके |
सम्हारी | सँभाला |
न जैहै | नहीं जाएगी |
Raskhan ke Savaiye प्रसंग 4
प्रस्तुत चौथा सवैया भी हमारी पाठ्यपुस्तक क्षितिज पाठ 11 से लिया गया है और इस समय या के रचयिता रसखान हैं और इस सवैया में कवि ने गोपियां का कृष्ण के अधरों की मुस्कान और उनकी बांसुरी की मधुर ध्वनि से प्रभावित होना और खुद को उनके प्रति आकर्षित होने से रोकने के बारे में बताता है
Raskhan ke Savaiye भावार्थ 4
कवि रसखान ने चौथे समय में गोपियों और कृष्ण के व्रत गोपियों का प्रेम का वर्णन किया है कि किस तरह गोपियां कृष्ण की मुरली की मधुर ध्वनि सुनकर अपने कानों में उंगलियां डालना चाहती हैं।


ताकि मुरली की मधुर तान उनके कानों तक ना पहुंच सके और कृष्ण के प्रति वह आकर्षित ना हो भले ही कृष्ण क्यों ना ऊंची अटारी पर चढ़कर मुरली की मधुर तान छोड़ते हुए गोवर्धन पर्वत पर ब्रज में गाया जाने वाला लोकगीत ही क्यों ना गाए पर हम पर उनका कोई भी असर ना होगा।
भले ही कल संसार के लोग कितना भी मुझे समझा ले अगर मैंने श्री कृष्ण कि वह अधरों पर मुस्कान देखे तो मैं उनके वश में हो ही जाऊंगी हाय री मां! उसके मुख की मुस्कान इतनी मनमोहक है कि उनके प्रभाव से बच पाना मुश्किल ही है मेरे लिए और उससे प्राप्त सुकून मैं नहीं संभाल पाऊंगी
Raskhan ke Savaiye विशेषता 4
- अंतिम सवैया में भी ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया गया है
- अंतिम सवैया के काल्हि कोऊ कितनो में अनुप्रास अलंकार है
Conclusion
आज की इस पोस्ट में हमने NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 11 – सवैये के भावार्थ प्रसंग और उनके शब्दार्थ के बारे में जानना और रसखान के सवैया दक्षिणी एशियाई साहित्य और संस्कृत में कितना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
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उसके बारे में जानना और रसखान की कविता प्रेम और भक्ति आध्यात्मिकता के विषयों की पड़ताल भी करी और भक्ति पर उनके जोर का पेड़ इधर पीड़ा किस तरह प्रभाव पड़ा है उसके बारे में भी जाना अगर आपको हमारी यह जानकारी पसंद आई हो तो कृपया कमेंट में जरूर बताएं।
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